Tuesday 16 June 2015



प्रतिष्ठा का उच्च सोपान
किसी ढाँचे में अपने को ढालने के लिए आस- पास का वातावरण भी वैसा ही बनाना पड़ता है। परिस्थितियों का अप्रत्यक्ष रूप से विशेष प्रभाव पड़ता है कई व्यक्ति अच्छे विचार तो रखते हैं, पर आस- पास की बुरी परिस्थितियों को नहीं बदलते। फलतः ऐसे अवसर आ जाते हैं, जब कि उनके कार्य भी बुरे ही होने लगते हैं। अतऐव अपने दैनिक कार्यक्रम में से उन बातों को चुन- चुनकर निकाल देना चाहिए जिनके कारण आवांछनीय परिणाम उत्पन्न होने की आशंका हो। इस संशोधन में जितनी सूक्ष्म वृद्धि से काम लेंगे, उतनी ही अधिक सफलता होगी। छोटे- छोटे रोडे़ जो नित्य के अभ्यास में आ जाने के कारण कुछ बहुत बुरे नहीं मालूम पड़ते, किसी दिन दुखदायी घटना उपस्थित कर सकते हैं, इसलिए उन्हें पहनने और हटाने में ढील न करनी चाहिए। रेल की पटरी पर रखा हुआ एक छोटा सा पत्थर का टुकडा़, समूची रेल को उलट देने का कारण हो सकता है, इसी प्रकार छोटे- छोटे अनुचित प्रसंग किसी दिन आत्म सम्मान के घोर घातक प्रमाणित हो सकते हैं
मजाक के तौर पर बहुत से आदमी अश्लील शब्दों का उच्चारण करते हैं। ऐसा वे कौतूहल के लिए हलके तौर पर करते हैं, कोई विशेष स्वार्थ उनका नहीं होता पर कौतूहल ही कौतूहल में कुवचन बोलने की आदत पड़ जाती है और वह आदत किसी अपरिचित व्यक्ति के सामने अनायास ही प्रकट हो तो यह तो यह अपने मन में बहुत शीघ्र यह विश्वास जमा लेगा कि यह टुच्चा आदमी है। बेहूदे तरीके से बात करना, अकारण बेतरह दांत फाड़ना, विचित्र भाव भंगी बनाते रहना, निकृष्ट प्रसंगों को वार्तालाप का विषय बनाना, इस तरह के काम यद्यपि पापयुक्त होते हुए भी दूसरों पर यह प्रकट करते हैं कि यह आदमी हलके मिजाज का, उथला, असंस्कृत, गँवार या लुच्चा है। लोगों का इस तरह का स्वभाव अपने बारे में अकारण बने, यह कोई अच्छी बात नहीं है। आपकी मुख- मुद्रा गम्भीर रहनी चाहिए। हँसना मुस्कराना, प्रसन्न रहना एक कला है, यह एक आवश्यक गुण है, इस प्रकार बरता जाना चाहिए कि दुर्गुण न बन जाय। प्रसन्न रहने की आदत के साथ गम्भीरता, सौम्यता, तेजस्विता भी रहनी चाहिए। मुख- मुद्रा में गौरव और बड़प्पन की रेखायें भी नियोजित होनी चाहिए।

प्रतिष्ठा का उच्च सोपान 

No comments:

Post a Comment