Thursday, 25 June 2015
Sunday, 21 June 2015
सौहार्द्य का मंत्र सहनशीलता
जापान के 'सम्राट यामातो' का एक मंत्री था-' ओ-चो-सान'। उसका परिवार सौहार्द के लिए बड़ा मशहूर था। हालांकि उसके परिवार में लगभग एक हजार सदस्य थे, पर उनके बीच एकता का अटूट संबंध था। उसके सभी सदस्य साथ-साथ रहते और साथ ही खाना खाते थे। इस परिवार के किस्से दूर दूर तक फैल गए। ओ-चो-सान के परिवार के सौहार्द की बात 'सम्राट यामातो' के कानों तक भी पहुंच गई। सच की जांच करने के लिए एक दिन सम्राट स्वयं अपने इस बुजुर्ग मंत्री के घर तक आ पहुंचे।
स्वागत, सत्कार और शिष्टाचार की साधारण रस्में समाप्त हो जाने के बाद
यामातो ने पूछा- "ओ-चो! मैंने आपके परिवार की एकता और मिलनसारिता की ढेरों कहानियां सुनी हैं। क्या आप बताएंगे कि एक हजार से भी अधिक सदस्यों वाले आपके परिवार में यह सौहार्द और स्नेह संबंध आखिर किस तरह बना हुआ है।"
ओ-चो-सान वृद्धावस्था के कारण ज्यादा देर तक बात नहीं कर सकते थे। इसलिए उसने अपने पौत्र को संकेत से कलम-दवात और कागज लाने के लिए कहा। जब वह ये चीजें ले आया तो उसने अपने कांपते हाथ से तकरीबन सौ शब्द लिखकर वह कागज सम्राट को दे दिया।
सम्राट यामातो अपनी उत्सुकता न दबा पाया। उसने फौरन उस कागज को पढ़ना चाहा। देखते ही वह चकित रह गया। दरअसल, उस कागज पर एक ही शब्द को सौ बार लिखा गया था। और वह शब्द था- "सहनशीलता"।
सम्राट को अवाक देख ओ-चो-सान ने कांपती हुई आवाज में कहा- "मेरे परिवार के सौहार्द का रहस्य बस इसी एक शब्द में निहित है। सहनशीलता का यह महामंत्र ही हमारे बीच एकता का धागा अब तक पिरोए हुए है। इस महामंत्र को जितनी बार दुहराया जाए, कम है।"
दरअसल मित्रों!! देखा जाए तो, सिर्फ परिवार ही नही समाज या सम्पूर्ण विश्व की एकता भी इसी एक शब्द "सहनाशीलता" से संभव है॥
Wednesday, 17 June 2015
सनातन धर्म
8 आदतों से सुधारें अपना घर :
1) 👉::
अगर आपको कहीं पर भी थूकने की आदत है तो यह निश्चित है
कि आपको यश, सम्मान अगर मुश्किल से मिल भी जाता है
तो कभी टिकेगा ही नहीं .
wash basin में ही यह काम कर आया करें !
2) 👉::
जिन लोगों को अपनी जूठी थाली या बर्तन वहीं उसी जगह पर
छोड़ने की आदत होती है उनको सफलता कभी भी स्थायी रूप से नहीं मिलती.!
बहुत मेहनत करनी पड़ती है और ऐसे लोग अच्छा नाम नहीं कमा पाते.!
अगर आप अपने जूठे बर्तनों को उठाकर उनकी सही जगह पर रख आते हैं तो चन्द्रमा और शनि का आप सम्मान करते हैं !
3) 👉::
जब भी हमारे घर पर कोई भी बाहर से आये, चाहे मेहमान हो या कोई काम करने वाला, उसे स्वच्छ पानी जरुर पिलाएं !
ऐसा करने से हम राहू का सम्मान करते हैं.!
जो लोग बाहर से आने वाले लोगों को स्वच्छ पानी हमेशा पिलाते हैं उनके घर में कभी भी राहू का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.!
4) 👉::
घर के पौधे आपके अपने परिवार के सदस्यों जैसे ही होते हैं, उन्हें भी प्यार और थोड़ी देखभाल की जरुरत होती है.!
जिस घर में सुबह-शाम पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध, सूर्य और चन्द्रमा का सम्मान करते हुए परेशानियों से डटकर लड़ पाते हैं.!
जो लोग नियमित रूप से पौधों को पानी देते हैं, उन लोगों को depression, anxiety जैसी परेशानियाँ जल्दी से नहीं पकड़ पातीं.!
5) 👉::
जो लोग बाहर से आकर अपने चप्पल, जूते, मोज़े इधर-उधर फैंक देते हैं, उन्हें उनके शत्रु बड़ा परेशान करते हैं.!
इससे बचने के लिए अपने चप्पल-जूते करीने से लगाकर रखें, आपकी प्रतिष्ठा बनी रहेगी
6) 👉::
उन लोगों का राहू और शनि खराब होगा, जो लोग जब भी अपना बिस्तर छोड़ेंगे तो उनका बिस्तर हमेशा फैला हुआ होगा, सिलवटें ज्यादा होंगी, चादर कहीं, तकिया कहीं, कम्बल कहीं ?
उसपर ऐसे लोग अपने पुराने पहने हुए कपडे तक फैला कर रखते हैं ! ऐसे लोगों की पूरी दिनचर्या कभी भी व्यवस्थित नहीं रहती, जिसकी वजह से वे खुद भी परेशान रहते हैं और दूसरों को भी परेशान करते हैं.!
इससे बचने के लिए उठते ही स्वयं अपना बिस्तर समेट दें.!
7)👉::
पैरों की सफाई पर हम लोगों को हर वक्त ख़ास ध्यान देना चाहिए,
जो कि हम में से बहुत सारे लोग भूल जाते हैं ! नहाते समय अपने पैरों को अच्छी तरह से धोयें, कभी भी बाहर से आयें तो पांच मिनट रुक कर मुँह और पैर धोयें.!
आप खुद यह पाएंगे कि आपका चिड़चिड़ापन कम होगा, दिमाग की शक्ति बढेगी और क्रोध
धीरे-धीरे कम होने लगेगा.!
8) 👉::
रोज़ खाली हाथ घर लौटने पर धीरे-धीरे उस घर से लक्ष्मी चली जाती है और उस घर के सदस्यों में नकारात्मक या निराशा के भाव आने लगते हैं.!
इसके विपरित घर लौटते समय कुछ न कुछ वस्तु लेकर आएं तो उससे घर में बरकत बनी रहती है.!
उस घर में लक्ष्मी का वास होता जाता है.!
हर रोज घर में कुछ न कुछ लेकर आना वृद्धि का सूचक माना गया है.!
ऐसे घर में सुख, समृद्धि और धन हमेशा बढ़ता जाता है और घर में रहने वाले सदस्यों की भी तरक्की होती है.! (मधु शर्मा)
बॉलीवुड के बादल छाये, बदलावों की बारिश है,
ये है सिर्फ सिनेमा या फिर सोची समझी साजिश है,
याद करो आशा पारिख के सर पे पल्लू रहता था,
हीरो मर्यादा में रहकर प्यार मोहब्बत करता था
प्रणय दृश्य दो फूलों के टकराने में हो जाता था,
नीरज, साहिर के गीतों पर पावन प्रेम लजाता था,
लेकिन अब तो बेशर्मी के घूँट सभी को पीने हैं,
जांघो तक सुन्दरता सिमटी, खुले हुए अब सीने हैं,
नयी पीढियां कामुकता के घृणित भाव की प्यासी हैं,
कन्यायें तक छोटे छोटे परिधानों की दासी हैं,
क्या तुमको ये सब विकास का ही परिचायक लगता है,
हनी सिंह भी क्या समाज का शीर्ष सुधारक लगता है?
क्या तुमको पश्चिम के ये षडयंत्र समझ में आते हैं?
क्या शराब की कंपनियों के लक्ष्य नही दिखलाते हैं?
लल्ला लल्ला लोरी वाली लोरी भी बदनाम हुयी,
और कटोरी दूध भरी अब दारू वाला जाम हुयी,
बोतल एक वोदका पीना काम हुआ है डेली का,
वाइन विद आइस नारा है पीढ़ी नयी नवेली का,
राष्ट्र प्रेम की फिल्मे देखों औंधे मूह गिर जाती हैं,
पीकू पीके कचड़ा करके रुपये करोडों पाती हैं,
खुदा-इबादत-अल्लाह-रब ही गीतों में अब छाये हैं,
सेक्सी राधा डांस फ्लोर तक देखो ये लाये हैं,
निज परम्परा धर्म और संस्कारों पर आघात है ये,
जिसे सिनेमा कहते हो इक जहरीली बरसात है ये,
कर्मा, बॉर्डर, क्रांति, सरीखा दौर पुनः लौटाओ जी,
या फिर चुल्लू भर पानी में डूब कहीं मर जाओ जी,
Tuesday, 16 June 2015
गुलाम
सिकंदर महान ने अपने रण कौशल से ग्रीस, इजिप्ट समेत उत्तर भारत तक अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। सालों से युद्ध करती सिकंदर की सेना बहुत थक चुकी थी और अब वो अपने परिवारों के पास वापस लौटना चाहती थी। सिकंदर को भी अपने सैनिकों की इच्छा का सम्मान करना पड़ा और उसने भी भारत से लौटने का मन बना लिया।
पर जाने से पहले वह किसी ज्ञानी व्यक्ति को अपने साथ ले जाना चाहता था। स्थानीय लोगों से पूछने पर उसे एक पहुंचे हुए बाबा के बारे में पता चला जो कुछ दूरी पर स्थित एक नगर में रहते थे।
सिकंदर दल-बल के साथ वहां पहुंचा। बाबा निःवस्त्र एक पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठे थे। सिकंदर उनके ध्यान से बाहर आने का इंतज़ार करने लगा। कुछ देर बाद बाबा ध्यान से बाहर निकले और उनके आँखें खोलते ही सैनिक ” सिकंदर महान – सिकंदर महान ” के नारे लगाने लगे।
बाबा अपने स्थान पर बैठे उन्हें ऐसा करते देख मुस्कुरा रहे थे।
सिकंदर उनके सामने आया और बोला , ” मैं आपको अपने देश ले जाना चाहता हूँ। चलिए हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो जाइये। “
बाबा बोले, ” मैं तो यहीं ठीक हूँ , मैं यहाँ से कहीं नहीं जाना चाहता , मैं जो चाहता हूँ सब यहीं उपलब्ध है , तुम्हे जहाँ जाना है जाओ। “
एक मामूली से संत का यह जवाब सुनकर सिकंदर के सैनिक भड़क उठे। भला इतने बड़े राजा को कोई मना कैसे कर सकता था।
सिकंदर ने सैनिकों को शांत करते हुए बाबा से कहा , ” मैं ‘ना’ सुनने का आदि नहीं हूँ , आपको मेरे साथ चलना ही होगा। “
बाबा बिना घबराये बोले , ” यह मेरा जीवन है और मैं ही इसका फैसला कर सकता हूँ कि मुझे कहाँ जाना है और कहाँ नहीं !”
यह सुन सिकंदर गुस्से से लाल हो गया उसने फ़ौरन अपनी तलवार निकाली और बाबा के गले से सटा दी , ” अब क्या बोलते हो , मेरे साथ चलोगे या मौत को गले लगाना चाहोगे ??”
बाबा अब भी शांत थे , ” मैं तो कहीं नहीं जा रहा , अगर तुम मुझे मारना चाहते हो तो मार दो , पर आज के बाद से कभी अपने नाम के साथ “महान” शब्द का प्रयोग मत करना , क्योंकि तुम्हारे अंदर महान होने जैसी कोई बात नहीं है … तुम तो मेरे गुलाम के भी गुलाम हो !!”
सिकंदर अब और भी क्रोधित हो उठा, भला दुनिया जीतने वाले इतने बड़े योद्धा को एक निर्बल – निःवस्त्र , व्यक्ति अपने गुलाम का भी गुलाम कैसे कह सकता था।
” तुम्हारा मतलब क्या है ?”, सिकंदर क्रोधित होते हुए बोला।
बाबा बोले, ” क्रोध मेरा गुलाम है , मैं जब तक नहीं चाहता मुझे क्रोध नहीं आता , लेकिन तुम अपने क्रोध के गुलाम हो , तुमने बहुत से योद्धाओं को पराजित किया पर अपने क्रोध से नहीं जीत पाये , वो जब चाहता है तुम्हारे ऊपर सवार हो जाता है, तो बताओ…हुए ना तुम मेरे गुलाम के गुलाम। “
सिकंदर बाबा की बातें सुनकर स्तब्ध रह गया। वह उनके सामने नतमस्तक हो गया और अपने सैनिकों के साथ वापस लौट गया।
प्रतिष्ठा का उच्च सोपान
किसी ढाँचे में अपने को ढालने के लिए आस- पास का वातावरण भी वैसा ही बनाना पड़ता है। परिस्थितियों का अप्रत्यक्ष रूप से विशेष प्रभाव पड़ता है कई व्यक्ति अच्छे विचार तो रखते हैं, पर आस- पास की बुरी परिस्थितियों को नहीं बदलते। फलतः ऐसे अवसर आ जाते हैं, जब कि उनके कार्य भी बुरे ही होने लगते हैं। अतऐव अपने दैनिक कार्यक्रम में से उन बातों को चुन- चुनकर निकाल देना चाहिए जिनके कारण आवांछनीय परिणाम उत्पन्न होने की आशंका हो। इस संशोधन में जितनी सूक्ष्म वृद्धि से काम लेंगे, उतनी ही अधिक सफलता होगी। छोटे- छोटे रोडे़ जो नित्य के अभ्यास में आ जाने के कारण कुछ बहुत बुरे नहीं मालूम पड़ते, किसी दिन दुखदायी घटना उपस्थित कर सकते हैं, इसलिए उन्हें पहनने और हटाने में ढील न करनी चाहिए। रेल की पटरी पर रखा हुआ एक छोटा सा पत्थर का टुकडा़, समूची रेल को उलट देने का कारण हो सकता है, इसी प्रकार छोटे- छोटे अनुचित प्रसंग किसी दिन आत्म सम्मान के घोर घातक प्रमाणित हो सकते हैं
मजाक के तौर पर बहुत से आदमी अश्लील शब्दों का उच्चारण करते हैं। ऐसा वे कौतूहल के लिए हलके तौर पर करते हैं, कोई विशेष स्वार्थ उनका नहीं होता पर कौतूहल ही कौतूहल में कुवचन बोलने की आदत पड़ जाती है और वह आदत किसी अपरिचित व्यक्ति के सामने अनायास ही प्रकट हो तो यह तो यह अपने मन में बहुत शीघ्र यह विश्वास जमा लेगा कि यह टुच्चा आदमी है। बेहूदे तरीके से बात करना, अकारण बेतरह दांत फाड़ना, विचित्र भाव भंगी बनाते रहना, निकृष्ट प्रसंगों को वार्तालाप का विषय बनाना, इस तरह के काम यद्यपि पापयुक्त होते हुए भी दूसरों पर यह प्रकट करते हैं कि यह आदमी हलके मिजाज का, उथला, असंस्कृत, गँवार या लुच्चा है। लोगों का इस तरह का स्वभाव अपने बारे में अकारण बने, यह कोई अच्छी बात नहीं है। आपकी मुख- मुद्रा गम्भीर रहनी चाहिए। हँसना मुस्कराना, प्रसन्न रहना एक कला है, यह एक आवश्यक गुण है, इस प्रकार बरता जाना चाहिए कि दुर्गुण न बन जाय। प्रसन्न रहने की आदत के साथ गम्भीरता, सौम्यता, तेजस्विता भी रहनी चाहिए। मुख- मुद्रा में गौरव और बड़प्पन की रेखायें भी नियोजित होनी चाहिए।
प्रतिष्ठा का उच्च सोपान
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